जातिवाद की खीर
चूल्हे पर जिनके पके, जातिवाद की खीर ।
बनते हैं साहित्य के, वे भी आज कबीर ।।
चला जाति पर ही सदा, शब्दों की शमशीर।
कहलाते साहित्य के, कुछ जन आज कबीर ।।
रमेश शर्मा.
चूल्हे पर जिनके पके, जातिवाद की खीर ।
बनते हैं साहित्य के, वे भी आज कबीर ।।
चला जाति पर ही सदा, शब्दों की शमशीर।
कहलाते साहित्य के, कुछ जन आज कबीर ।।
रमेश शर्मा.