जागो, जगाओ नहीं
कितना बुरा प्रारब्ध था,
कुछ भी नहीं उपलब्ध था।
झूठ के उस झुंड में,
सत्य भी निः शब्द था।।
कायरों का नीड़ था,
पापियों का भीड़ था।
वीर अभिमन्यु बधा ,
जो पांडवो का रीढ़ था।।
अभिमन्यु वध आमंत्रण था,
कौरवनाश का खुला निमंत्रण था।
या सत्य का ये अंतिम चुप था,
जिसके उपरांत महारण था।।
अर्जुन तो सत्य समर्पित था,
जिसका सत्य स्वयं सारथी था।
तब शस्त्र ने थामा धर्म ध्वजा,
क्या टिक सका कोई महारथी था।।
उद्वेलित करना बंद करो,
अपमानित करना बंद करो।
मत छेड़ो सत्य सनातन को,
महाकाल से लड़ना बंद करो।।
कितने ही राक्षस भक्त हुए,
तुम सब भक्ती स्वीकार करो।
“संजय” मैं सत्य बताता हूं,
न खुद का तुम संहार करो।।
जै हिंद