“ज़ुबान हिल न पाई”
सोंच को शिखर तक,उड़ान मिल न पाई
मैं सोंचता ही रह गया,ज़ुबान हिल न पाई
आंखों के सामने ही,सब खेल चल रहा है,
गूंगे और बहरों का,यहां मेल चल रहा है।
लंगड़ों ने देख लो,ये रेस है लगाई,
मैं देखता ही रह गया,ज़ुबान हिल न पाई।।
चंदन को यहां देखो,बेचैन हो रहा है,
अपने ही गुण पे वह तो,अफ़सोस कर रहा है
सांपों ने उसकी देखो,हालत है क्या बनाई,
मैं देखता ही रह गया,ज़ुबान हिल न पाई।।
अच्छे को यहां अब तो,अच्छाई सिद्ध करनी,
कर्मठ व्यक्तियों को,कर्मठता सिद्ध करनी।
झूठे फरेबियों ने महफिल है क्या सजाई,
मैं देखता ही रहा गया,ज़ुबान हिल न पाई।।
सोंच को शिखर तक,उड़ान मिल न पाई।
मैं सोंचता ही रह गया,ज़ुबान हिल न पाई।।
अमित मिश्र
जवाहर नवोदय विद्यालय
रामपुर उत्तर प्रदेश