ज़िम्मेवारी
आदित्य दुबई आबूधाबी हाईवे पर गाड़ी चला रहा था, हर सप्ताहांत वह दुबई आकर रहता था, यहाँ होटल में सोमवार सुबह तक रूकता, अंजान लोगों से मिलता, स्क्वैश खेलता, तैरता, कैसीनो जाता , बार में समय बिताता, और किसी तरह अगला एक हफ़्ता काम में खपा देता। दो तलाक़ हो चुके थे, पापा का खड़ा किया बहुत बड़ा बिज़नेस था , बहुत बड़ा घर था, पर वह अकेला अबूधाबी में अलग से किराए के मकान में रहता था । खाना बाहर खाता था, कपड़े बेहिसाब थे, पैसे की कोई कमी नहीं थी। परन्तु किसी से गहरा रिश्ता नहीं था, वर्ष भर से माँ पापा को मिलने उनके घर नहीं गया था , वह उदास था और भटक रहा था , स्वयं को ढूँढते ढूँढते थक गया था , वह ग़ुस्से से भरा था और यह ग़ुस्सा उसे अपने माँ बाप से था, यह वह जानता था , पर इससे मुक्ति पाना उसके बस में नहीं था ।
एक दिन वह रात को बार में अकेला था तो रेचल जो वहाँ बार टेंडर थी , उससे बातें करने लगा , रेचल एक सुलझी हुई लडकी थी, अपने देश युकरेन को संकटों से घिरते देखा था उसने , पढ़ेलिखे माँ बाप की शिक्षित बेटी थी , परन्तु निर्धनता ने यह काम करने के लिए बाध्य कर दिया था । आदित्य देर रात तक उससे दुनिया भर की बातें कर रहा था, वह देख रही थी, लड़का पढ़ा लिखा, अच्छे परिवार से है, परन्तु अकेला है, जीवन को बांधने के लिए जो भी चाहिए उसे नकार रहा है और कहीं गहरे बंधना भी चाहता है, तलाकशुदा पत्नियों को याद कर रहा है , माँ बाप से गहरे तक जुड़ा है , पर उनसे नाराज़ होकर बैठा है ।
जब वह जाने लगा तो रेचल ने कहा, “ तुमसे मिलकर अच्छा लगा , एक अच्छे इंसान हो तुम ।”
“ सच ?” उसने मासूमियत से पूछा ।
“ हाँ , कितने हैंडसम हो , मेरे साथ कितनी इज़्ज़त से पेश आए, तुम औरतों का सम्मान करना जानते हो ।”
“ वो इसलिए क्योंकि मैं बहुत सी अच्छी औरतों को जानता हूँ ।”
“ हाँ । आज घर जाओ अपनी माँ पापा के पास , तुम्हारी माँ निश्चय ही बहुत अच्छी माँ होंगी ।”
“ वे दोनों कल मुझे आफ़िस में मिलेंगे, बताया था न, हमारा फ़ैमिली बिज़नेस है। “
“ गुड । यह लो मेरा कार्ड, स्टे इन टच ।”
आदित्य रेचल को भूल नहीं पा रहा था, वह बार बार उसे फ़ोन करता और रेचल बड़े अच्छे से उससे बात करती, अब हर सप्ताहांत वह रेचल के साथ बिताता , वह पहले भी कई बार प्रेम में पड़ चुका था , वह समझ रहा था , वह फिर से उस भावनात्मक भँवर में फँस रहा है, जिसे वह अर्थहीन करार देना चाहता है ।
एक दिन काम के बाद वह एक बड़े से होटल की बार में बैठा था , वह चुपचाप जैज़ सुन रहा था कि उसी की उम्र का एक युवा जोड़ा उसके बग़ल की मेज़ पर आकर बैठ गया , वे दोनों इस क़दर एक-दूसरे में खोये थे कि उसका अकेलापन और गहरा गया । उसने रेचल को फ़ोन किया, और कहा,
“ मुझसे शादी करोगी ?”
“ क्या ? “ रेचल ने हैरानी से कहा ।
“ मैं तुमसे प्यार करता हूँ ।”
“ कल मिलना मुझे ।” कहकर उसने फ़ोन काट दिया ।
अगले दिन रेचल ने कहा , “ अपने दिमाग़ में चल रहे इस तूफ़ान को रोकना होगा तुम्हें । “
“ कैसे ?”
“ मेरी बात मानकर ।”
“ वो क्या है ।”
“ तुम जानते हो मैंने युकरेन में हो रहे युद्ध को देखा है, उसमें हो रही खाने पीने की तंगी को झेला है, अस्पताल न पहुँच सकने के कारण अपनी माँ को मरते देखा है, पिता को गोली लगने से पंगु होते देखा है , अपना घर जलते देखा है, यहाँ आकर वह सब किया है, जो कभी ग़लत समझा था , मेरा बवायफरेंड था, हमारी शादी तय हो गई थी, पर उसको सेना में भर्ती होना पड़ा और अब वह लापता है, और भी बहुत कुछ हुआ है, जिसे मैं तुम्हें नहीं बताना चाहती ।और यह सब एक साल के अंदर , जैसे जीवन में सही ग़लत, ज़िंदगी सबका अंतर मिटाने पर उतारू थी, , शेष रह गया था , ग़ुस्सा, पश्चाताप, पीड़ा, बेचारगी ।”
आदित्य थोड़ी देर उसे देखता रहा , फिर बोला “ मैं समझ सकता हूँ , वह सब तुम्हें बहुत परेशान करता होगा।”
“ करता था , सारी रात सपने में यही सब चलता था, और सुबह लगता था, मैं अपने आपको जानती नहीं , इतनी तबाही देखी थी , जीने के लिए जो बन पड़ा करती रही , इतने ग़लत काम किये कि उन सबके ख़्याल मात्र से मेरा रोना छूट जाता था ।”
आदित्य उसे चुपचाप देखता रहा, रेचल ने थोड़ी देर रूक कर फिर कहा,
“ फिर एक दिन मुझे ख़्याल आया कि मैं उसके लिए शर्मसार हूँ जो मैंने किया ही नहीं, मेरे सामने वह हालत आ गए, जिनसे जूझने के सिवाय मेरे पास कोई चारा नहीं था, समाज, राजनीति, रीतिरिवाज , सबका बोझ मैं अपने कंधों पर लाद रही थी , बूँद थी और समुद्र बनना चाह रही थी , मैं तो हमेशा ईमानदार थी , इतने बड़े तूफ़ान में भी मैं जीने के तरीक़े ढूँढती रही , मैं तो योद्धा हूँ , और बस, मैंने खुद को माफ़ कर दिया, एक ही पल में मैं फिर से जीवंत हो उठी, अब मेरे भीतर कोई बोझ नहीं ।” कहकर वह हंस दी , निश्चल हंसी ।
“ वे ग़लत काम क्या थे ? “ आदित्य ने मेज़ पर आगे खिसकते हुए गंभीरता से कहा ।
“ वह मैं तुम्हें नहीं बताना चाहती ,क्योंकि वे जहां लिखे थे, मैंने उस जगह को पोंछ दिया है, रह गए धब्बों से कोई कहानी नहीं बनती ।” और वह हंस दी , थोड़ी देर वे दोनों चुप रहे, रेचल ने फिर से कहना शुरू किया, अब उसकी आँखें कहीं दूर देख रहीं थी, उसकी आँखों में एक विश्वास, एक सहजता थी , उसने कहा ,
“ उन्हीं दिनों मैंने समझा , हमारा जीवन कुछ नहीं बस हालातों की प्रतिक्रिया है, हम हर पल यहाँ अपने हालात के अनुसार ढल रहे हैं , फिर यह हालात ईश्वर प्रदत्त हों या मनुष्य के बनाये , इससे कोई अंतर नहीं पड़ता । बस, उसी पल मैं मुक्त हो गई । “
“ तो तुम्हारे ग़लत काम सही हो गए ?”
“ नहीं । मेरा गलती स्वीकार करना और आगे बढ़ जाना सही कदम था ।”
आदित्य कुछ देर चुपचाप बैठा रहा , फिर कहा ,” यह सब सुनकर तो मैं और भी ज़्यादा तुमसे प्रेम करने लगा हूँ ।”
सुनकर रेचल हंस दी , “ काश यह सच होता , परन्तु तुम सैंतीस वर्ष के नहीं , सत्रह साल के बच्चे हो , तुम्हें अभी पता नहीं प्रेम क्या होता है।”
सुनकर आदित्य नाराज़ होने लगा, और रेचल ज़ोर से हंस दी , “ देखा , कैसे बच्चों जैसे नाराज़ हो गए ।” आदित्य असहाय सा उसे देखता रहा ।
रेचल ने फिर कहा , “ क्या फ़र्क़ पड़ता है यदि तुम्हारे मां बाप ने कभी तुम्हारा अपमान किया , या उनके विचार दक़ियानूसी हैं , सैंतीस साल का लड़का यह शिकायतें करता अच्छा नहीं लगता , क्यों अपनी ज़िम्मेवारी लेकर अपनी ज़िंदगी को नया रंग रूप नहीं दे डालते ? पैसे कमाने की अपनी सफलता पर गर्व करते हो , ठीक है, पर ज़िंदगी उससे आगे भी बहुत कुछ है । हर व्यक्ति अपने समाज का प्रतिबिम्ब है और समाज उसका । तुम्हारे माँ बाप जिस समाज का हिस्सा हैं वैसा ही व्यवहार करेंगे , तुम पूरी दुनिया से नाराज़ हो क्योंकि लोग जजमैंटल हैं, तुम भी तो वही कर रहे हो , सहानुभूति नहीं दे रहे , हार्वर्ड से एम . बी . ए , हो , लोगों की भावनाओं को समझ इतना कुछ बेच आते हो, पर खुद को कभी नहीं सुलझाया । एक महीने तक दूसरों को वैसे ही स्वीकार करो जैसे वे तुम्हें करते हैं, खुले दिल से , और फिर देखना कितना हल्का अनुभव करोगे ।”
“ तो एक महीने बाद विवाह की बात करें ?” आदित्य ने आकर्षक मुस्कान बिखेरते हुए कहा ।
“ नहीं । तुम अपना विवाह उससे करना जो तुम्हारी माँ जैसी हो, तुम उन्हीं की स्वीकृति ढूँढ रहे हो , कहीं भीतर माँ पापा से मिले तिरस्कार से तड़प रहे हो , उन्हें माफ़ कर दो ।यहाँ तुम्हारे पास अवसर है बेहतर इन्सान बनने का । मैं अपने मंगेतर का इंतज़ार करूँगी । इस युद्ध ने बहुत कुछ नष्ट कर दिया है , अगर यह संबंध बच सका तो मुझे फिर से थोड़ी सी खोई दुनिया मिल जायेगी ।
कहकर रेचल खड़ी हो गई । उसने टिश्यु से अपना मुँह पोंछा , मेकअप ठीक किया , गहरी साँस ली , और उसने जाने से पहले आदित्य की ओर हाथ बड़ा दिया, आदित्य ने खड़े होकर उससे हाथ मिला दिया ।
वह चली गई तो आदित्य चुपचाप कुर्सी पर बैठ गया ,रेचल के शब्दों ने उसपर अजीब सा असर किया था , और उसे लग रहा था रेचल ठीक ही तो कह रही थी, मैं दूसरों से एक ख़ास व्यवहार की अपेक्षा करता रहा , बिल्कुल एक बच्चे की तरह, उन्हें समझ भी तो सकता था, उन्हें माफ़ भी तो कर सकता था ,कितना कुंठित हो गया हूँ मैं , सरल रास्ते ढूँढने का एक ही उपाय है , खुद की ज़िम्मेवारी लेना ।मैं भी तो प्रतिक्रिया ही देता आया हूं , कभी किसी दूसरे की कमी को अपनी ताक़त से सहारा नहीं दिया ।
वह उठ खड़ा हुआ, बरसों बाद उसे यह दुनिया सही लग रही थी , बरसों बाद वह खुद को पहचान रहा था , बरसों बाद वह प्यार के सही मायने समझ रहा था । उसने गाड़ी अपने माँ बाप के घर की ओर मोड़ दी, ज़िम्मेवारी की शुरुआत वह जानता था ,उसे यहीं से करनी होगी ।
— शशि महाजन
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