ज़िंदा हूं
बुराई की बुराई क्यों करूं मैं।
खुदकी जग हंसाई क्यों करूं मैं।।
बुराई से वो सहांशाह बना बैठा है।
भला उसकी बड़ाई क्यों करूं मैं।।
मैं और मेरा एहतिमाम अभी जिंदा है।
डालूं कैसे गले, मरे सांप का जो फंदा है।।
मुबारक हो तुम्हें बुराई की ताबेदारी भी।
भला कायरों से लड़ाई क्यूं करूं मैं।
जय हिंद