ग़ज़ल(ज़िंदगी लगती ग़ज़ल सी प्यार में)
ज़िंदगी लगती ग़ज़ल सी प्यार में
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है कशिश ऐसी मिरे अशआर में
ज़िंदगी लगती ग़ज़ल सी प्यार में
प्यार में है रूठना भी लाज़िमी
है अलग सा ही मज़ा मनुहार में
इश्क़ होना क़ुदरती सौगात है
देर लगती है मग़र इज़हार में
फूल ,कलियों कोअधर से चूमकर
भेजते बोसा मुझे उपहार में
हर नफ़स में बस रहा बस तू ही तू
है अलग सा ही नशा दीदार में।
स्वरचित
डॉक्टर रागिनी शर्मा,इंदौर