ज़िंदगी में
कभी -कभी हम
जिद्दी बच्चे की तरह हठी हो जाते है
वास्तविकता को महसूस किए बिना
हम सच को स्वीकार नहीं पाते
जैसा हम सोचते है
वैसा संभव नहीं हो पाता
तो हम अधीर से हो जाते है
सब कुछ भुला कर आगे बढ़ना
यही जीवन की गति होती है
पर हम समझ ही नही पाते
जैसे एक ही खिलौने के लिए
बच्चा दुनिया अपने सिर पर उठा लेता है
उसी प्रकार हम भी अपने मन को
इन अतृप्त इच्छाओं का गुलाम बना लेते है
और ये इच्छाएं हमारे मार्ग को अवरूद्ध कर देती है
हमे लगता है अगर ये नहीं मिला तो
हमारा कोई अस्तित्व नहीं
पर वास्तव में
जब कुछ भी स्थाई नही इस संसार में
तो किस प्रकार अपनी इच्छाओं की वजह से
ज़िंदगी के गीतों के स्वर को खो देना कितना सही है
अगर हमारी योजना नहीं चली
ईश्वर की योजना में क्यों शामिल नहीं होते
ज़िंदगी अनमोल है ,प्यारी है
यहां सब कुछ खो देने के बाद भी
कुछ पाने की उम्मीद हमेशा होती है
द्वारा रचित
अभिषेक राजहंस