ज़िंदगी की पैरवी ( ग़ज़ल )
ज़िंदगी की पैरवी ( ग़ज़ल )
ज़िंदगी की पैरवी करता हूँ मैं
रोज़ मुस्कुरा कर जीता हूँ मैं ,
रोज़ मुस्कुरा कर मरता हूँ मैं।
हो जाता है जुर्म मुझसे भी
क्योकि इंसान की तरह ही
आहे भरता हूँ मैं।
ज़िंदगी की पैरवी करता हूँ मैं
मोहब्बत मैंने भी की है ज़माने,
आज भी कभी कभी खोये हुए
उन रास्तों से गुज़रता हूँ मैं।
ज़िंदगी की पैरवी करता हूँ मैं
हसन ने भी कहा था तनहा
ज़िंदगी में तो सभी प्यार किया करते है
और उनको ये खबर कोई दे दे,
उनसे आज भी प्यार किया करता हूँ मैं।
ज़िंदगी की पैरवी करता हूँ मैं
आज दुनियां पहुंच गई चाँद पर बेशक
ज़मीं से गिनते है अब भी हम तारे
और टूटे तारों से आज भी दुआ करता हूँ मैं।
ज़िंदगी की पैरवी करता हूँ मैं
आपका अपना दोस्त तनहा शायर हूँ -यश