ज़िंदगी का नशा
ये ज़िंदगी जीना ही नशा है
जो सबको करना चाहिए
आए हैं हम इस दुनिया में तो
इसको हर पल जीना चाहिए
ज़िंदगी का नशा लगा हो जिसको
उसको कोई और नशा नहीं चाहिए
आनंद लेता है जीवन के हर पल का वो
तुमको भी आज़मा कर देखना चाहिए
क्या रखा है शराब के नशे में
आदमी को हैवान बना देता है
भुला जाता है सबकुछ जब
फिर वो कैसे मज़ा देता है
नशा तो है प्रकृति के कण कण में
बस उसको लेना आना चाहिए
देखा है क्या उगते सूरज को कभी
हर रोज़ ऐसे जीना चाहिए
कल कल करते झरने,
नई दुल्हन सी नदी की छनछनाहट
वो पहाड़ों के सुंदर आकार
देखोगे तो सारे नशे भूल जाने चाहिए
ताजगी सुबह की मिटा देती पलभर में
जो भी नशा तू करता है
हो जाए नशा सुबह की ताजगी लेने का
वो ज़िंदगी को ताउम्र मज़ा देता रहता है
नशा तो है इन पंछियों की आवाज़ में
जो मनमोहक संगीत सा सुकून देता है
थोड़ा सा चलकर देख ले जंगल के बीच में
आभास स्वर्ग का वो देता है
नशा चुराएगा अगर कभी गोरी की आँखों से
होश नहीं आएगा ताउम्र याद आती रहेगी उसकी
तू बस इतना कर, करता है प्यार जिससे
झांककर तो देख एक बार आँखों में उसकी
है उससे बड़ा फिर एक ही नशा
तू एकबार जाकर देख ले प्रभु के दरबार भी
समेट ले जो मिलती है मन की शांति वहां
कोई गिला न रह जाएगा तुझे ज़िंदगी के बाद भी।