ज़रूरत मतलब लालच और रिश्ते
“ज़रूरत, मतलब, लालच और रिश्ते”
ज़रूरतें कब हो गईं, एक गैर जरूरी बात, पता ही न चला
रोशनी का सबब ढूंढते, कब हो गई रात, पता ही न चला
अब तो हसरतें भी, तंज सा कसने लगीं हैं मेरी ज़रूरतों पर
कहां खो गई मेरी वो ख्वाहिशों की बरसात, पता ही न चला
एक ज़माना था, हमारी दुनिया थी, दुनिया ज़रूरतमंदों की
क्यों हो गए बदनाम, ज़रूरतों के जज़्बात, पता ही न चला
हमारी हर ज़रूरत की नींव में जड़े होते हैं मतलब के पत्थर
ये मतलबी मियां कब बने लालची हज़रात, पता ही न चला
हर रिश्ते के ज़ेहन में, इक ज़रूरत होती है, मतलब होता है
आखिर कब क्यों कैसे भूल गए हम ये बात पता ही न चला
~ नितिन जोधपुरी “छीण”