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2 May 2024 · 1 min read

ज़रूरत मतलब लालच और रिश्ते

“ज़रूरत, मतलब, लालच और रिश्ते”

ज़रूरतें कब हो गईं, एक गैर जरूरी बात, पता ही न चला
रोशनी का सबब ढूंढते, कब हो गई रात, पता ही न चला

अब तो हसरतें भी, तंज सा कसने लगीं हैं मेरी ज़रूरतों पर
कहां खो गई मेरी वो ख्वाहिशों की बरसात, पता ही न चला

एक ज़माना था, हमारी दुनिया थी, दुनिया ज़रूरतमंदों की
क्यों हो गए बदनाम, ज़रूरतों के जज़्बात, पता ही न चला

हमारी हर ज़रूरत की नींव में जड़े होते हैं मतलब के पत्थर
ये मतलबी मियां कब बने लालची हज़रात, पता ही न चला

हर रिश्ते के ज़ेहन में, इक ज़रूरत होती है, मतलब होता है
आखिर कब क्यों कैसे भूल गए हम ये बात पता ही न चला

~ नितिन जोधपुरी “छीण”

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