ज़माने में
गीतिका
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जरूरी है सभी के साथ चलना है ज़माने में।
बहुत आनन्द आता है किए वादे निभाने में।
हमारे सामने तुम हो जरा सा मुस्कुरा भी दो।
अधिक देरी नहीं अच्छी मुहब्बत को जताने में।
जरा देखो खिले हैं फूल महकाते दिशाओं को।
मजा अपना अलग है भावनाओं को जगाने में।
सभी के साथ रहना स्वार्थ अपने भूलने हमको।
कदम मिलने जरूरी है यहां अपना बनाने में।
अगर हैं चाहतें मन में हमें जब आजमाने की।
नहीं अब सोचना ज्यादा हमारे पास आने में।
बहुत मन से तिरायी बारिशों में नाव कागज की।
चलो अब लौटना हमको उसी बचपन पुराने में।
उदासी को छुपाकर मुस्कुराना भी जरूरी है।
कठिन पथ से गुजरना नित्य खुशियों को बचाने में।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य