ज़माने की फ़ितरत
ज़ालिम ज़माने की फ़ितरत को मैंने जान लिया है।
दर्दे दिल को जज्ब़ कर मुस्कुराना सीख लिया है।
दिल के ज़ख्म़ अम़ानत है जब से मैंने जाना है।
ज़माने में जख्म़ों का मुदावा ढूंढना छोड़ दिया है।
इश्क़ के कई दुश्मन इस ज़माने में बसते हैं।
हमेशा प़ाक मोहब्ब़त को रुस़वा करने की नाप़ाक कोश़िश में रहते हैं।