ज़बानें हमारी हैं, सदियों पुरानी
ज़बानें हमारी हैं, सदियों पुरानी
ये हिंदी, ये उर्दू, ये हिन्दोस्तानी….
कभी रंग खुसरो, कभी मीर आए
कभी शे’र देखो, असद गुनगुनाए
चिराग़ाँ जलाओ, ठहाके लगाओ
यहाँ ख़ूबसूरत, सुख़नवर हैं आए
है सदियों से दुनिया, इन्हीं की दिवानी….
यहाँ सूर-तुलसी के, पद गूंजते हैं
जिन्हें गाके श्रद्धा से, हम झूमते हैं
कबीरा-बिहारी के, दोहे निराले
जिन्हें आज भी सारे, कवि पूछते हैं
कि हिंदी पे छाई है, फिर से जवानी…..
महावीर उत्तरांचली