ज़नहरण घनाक्षरी
ज़नहरण घनाक्षरी
तुम बिन मन य़ह,
लगत न कथमपि,
चल दिख प्रियवर,
मन कर मधुरा।
तुम सम नहिं कुछ,
नित प्रिय सब कुछ,
अति मधु रस तुम,
मनहर सुथरा।
अतुल अटल हिय,
लगत बहुत प्रिय,
मिलत परम सुख,
मनसिज बहता।
रति मति सुखमय,
अमर कलशमय,
दिल बहलत जिमि,
सब प्रिय कहता।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।