#ज़ख्मों के फूल
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★ #ज़ख़्मों के फूल ★
सुकूँ गया जहान का
मील के पत्थर हिल गए
वो गए तो गए सौगात में
कुछ नग़मे मिल गए
गुम हो गईं परछाईयाँ
उगती सवेर में
मेहरबानियों से उनकी
ज़ख़्मों के फूल खिल गए
वीरानियाँ ख़ामोशियाँ
और दौलत सर्द आहों की
बदले में सिर्फ़ यारो
यारों के दिल गए
कहाँ तक उलझता
मैं बिगड़े नसीब से
उसकी खुली ज़ुबान
मेरे होंठ सिल गए
उनके यहाँ से सिर्फ़ हम उठे
इधर की क्या कहें
लबों की लज़्ज़त आँखों के पैमाने
गालों के तिल गए
मासूम-सा सवाल इक
नश्तर-सा चुभ गया
“अब कब मिलोगे ?”
अहसास नर्म-नाज़ुक छिल गए
कोई कहे न उनकी ख़ता
जानता हूँ मैं
राहे-वफ़ा दुश्वार बहुत
होश के भी होश हिल गए !
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२