जहां से उठा वही से गिरा हूं मैं।
कोयले की खान से निकला हुआ हीरा हूं मैं।
जहां से उठा हूं वही से गिरा हूं मैं।
रुलाया है जिंदगी ने चोटियों तक हमें।
जिससे जीता था उसी से हारा हूं मैं।
सफलता रत्ती भर बाकी थी।
रत्ती भर ने ही थकाया हमें।
हम चढ़ गए थे उस डाली पर।
था फल लगा जिस पर ।
उन्हीं टहनियों ने गिराया हमें।
बह रहे थे बनकर इक नदी।
बनकर बांध अपनों ने भी ठहराया हमें।
मुफलिसी की पड़ी मार ऐसी।
रुपए ने ही बताया हालत मेरी।
फटे वस्त्र की तौहीन न कर।
लगी चोट तो घाव को सुखाया वही।
आनंद इस मैखाने में कमी है नशे की।
जो हसने का सबब था रुलाया वही।
RJ Anand Prajapati