मैं ना जाने क्या कर रहा...!
बात हद से बढ़ानी नहीं चाहिए
जब एक लौ एक उम्मीद जला करती है,
याद रखना कोई ज़रूरी नहीं ,
आँखे हैं दो लेकिन नज़र एक ही आता है
*छोड़कर जब माँ को जातीं, बेटियाँ ससुराल में ( हिंदी गजल/गीति
शब्द ढ़ाई अक्षर के होते हैं
" अधरों पर मधु बोल "
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
लिखा नहीं था नसीब में, अपना मिलन
पुस्तक विमर्श (समीक्षा )- " साये में धूप "
ग़म-ख़ुशी सब परख के चुप था वो- संदीप ठाकुर
नज़्म _ तन्हा कश्ती , तन्हा ये समन्दर है ,
मैं और वो
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
हर हाल मे,जिंदा ये रवायत रखना।
हे राम,,,,,,,,,सहारा तेरा है।
..........अकेला ही.......
जो आपका गुस्सा सहन करके भी आपका ही साथ दें,
मोहब्बत में इतना सताया है तूने।