जहाँ में किसी का सहारा न था
ग़ज़ल
जहाँ में किसी का सहारा न था
मगर हौसला मैंने हारा न था
तलातुम से कश्ती उलझती रही
मेरी मुश्किलों का किनारा न था
मैं एहसान लेता किसी ग़ैर का
अना को मेरी ये गँवारा न था
पलटने को बेताब दिल था मेरा
पर अफसोस तुमने पुकारा न था
भटकता रहा तीरगी में ‘अनीस’
मुकद्दर में कोई सितारा न था
– अनीस शाह ‘अनीस ‘