जहरीले धूप में (कविता )
कहाँ निकल पड़े चिलचिलाती गर्म धूप में
घड़ी दो घड़ी ठहर के जाते नर्म धूप में
छाता तो सही है, पानी भी रख लेते साथ में
सलाह मेरी मानिए, बिन पैसे मुफ्त में.
रखा है न प्याज़! अपने पायजामे के अंदर
नहीं रखा है तो रखा कीजिए अपने साथ में
जब कभी भी निकलिए विभीषण धूप में
लू की लहरों से मत खेलिए सड़क पर धूप में.
जाड़े के दिन नहीं अभी, गर्मी के दिन हैं जी
यह खिलखिलाती नहीं, झूलासाती है जी
नाम, गांव, जाति, धर्म, नेताओं से रिश्ता भी
नहीं चलता है, सड़कों पर लहलहाती धूप में.
जाइएगा आगे, तृष्णा भी बढ़ेगी धूप में
और जाइएगा मृगतृष्णा मिलेगी खड़ी धूप में
बुझेगी नहीं प्यास, पुरी नहीं होगी आस
कुएँ भी सुख गए हैं, इस कड़ी धूप में.
कुछ देर सुस्ता लीजिए, पीपल की छाँव में
जो मिलें, मिलिए, बातें कीजिए ठाँव में
अपना काम निपटा लीजिए भले ही जल्दी में
लौटिएगा नहीं अभी तुरंत जहरीले धूप में