जहन के भीतर///स्वतन्त्र ललिता मन्नू
जहन एक रास्ता है
जो जाता है
बन्द गली में
इस गली के आखरी छोर पर
एक मकान है।
और मैं जाता हूँ जीवन के कुछ
चुभते हुए सवालों को लेकर
और प्रतीक्षा में खड़ा हो जाता हूँ
पर उन सवालों के जवाब देने के लिए
कोई साया बाहर नही आता।
एक अंतहीन प्रतीक्षा
मुझे निराशा के सागर में डूबने पर
विवश कर देती हैं
मैं निराश भाव से लौट आता हूँ वापिस
चुभते हुए सभी सवालों को
वही का वही
आंगन में बिखेरकर।
बन्द गली के आखरी मकान की खिड़कियों
से सवालों के जवाब चुपचाप मुझे
घूरते रहते हैं।
(चित्र गूगल साभार)