जवानी
हर नजर घूरता अपनेपन में और तौलता अपनेपन में सच कड़वी होती हैं।
पार्थ- द्रोपदी आप भाइयों ने क्या हारा राज – पाठ , पर मैं क्या वस्तु थी जो मुझे दाँव लगा दिए बताए । औरत का ये पहला प्रश्न अधिकार के सबंध मेंl औरत के रूप में द्रोपदी बूढ़ी होती तो क्या उसका दाँव लगता उसका मूल्य होता , बात यहाँ जवानी से था सुंदरता से था।
आज भी लड़की के गुणों को कम आँका जाता है ।
दुर्भाग्यपूर्ण व्यवस्था के बीच आज भी लड़कियां जीती है ज्यादा।जवानी उसे कैद खाना देती है। समाज उसके व्यवस्थापक ।आज भी सुंदर देह से लड़कियों का ज्यादा महत्व है। यानि उसकी रूप युक्त यौवन पर ललचा जाता हैं,वो विकृत मानसिकता जो सिर्फ लड़की ,बच्ची ,औरत को( जिस्म) देह ,वस्तु के रूप में देखता है। जवानी तो जुनून होता है।
वक्त में संभालने, सम्हलने के लिए वो अवसर या संभवानायें हैं। जिसमें जिस्म से लेकर चैतन्य तक एक नया दौर या उच्च अवस्था प्राप्त करने का । व्यक्ति क्या नहीं हो सकता हैं।
यह प्रश्न औरत पर भी लागू होता है। औरत की सारी संभावनाएं स्वार्थ की बलि चढ़ जाती हैं। पता नहीं कृष्णा कहां है,अब तक ना जाने कितने द्रोपदी, दुर्योधन ,दुशासन की भरी जवानी में बलि चढ़ गई। अपने आपसे भी, पांचो इंद्रियां (पति) जनून पर है।
अपने चैतन्य युक्त (पत्नी) को दांव लगाने के लिए।
बुरा वक्त (दुर्योधन, दुशासन है) छलावा के साथ मिलता है, जीतता है। सकारात्मक कृष्णा है जो अब बची नहीं किसी के पास प्रायः हर एक व्यक्ति आज तनाव पूर्ण अवस्था में जी रहा है।चुनौतीपूर्ण जीवन है,हरेक स्तर पर।
बचपन, जवानी, बुढ़ापा जाए भी तो किधर ये तल है जीवन के क्रमिक का जो आएगा ,वक्त मंडराता है,और छलावा करता हैं।_ डा. सीमा कुमारी,बिहार,भागलपुर,दिनांक23-6-022की मौलिक एवं स्वरचित रचना जिसे आज प्रकाशित कर रही हूं।