जल
सागर गहरे राज समा कर जीवन को, अपनाता है ।
मेघ रूपहले राज छुपा कर जीवन को, हरसाता है।
प्रातः धरती की प्यास बढ़ाने सूरज नभ में आता होगा।
जल बिन मछली जैसे तड़पे धरती को तड़पाता होगा।
प्यास बुझाने राही की हर पथ में जल बरसाता है ।
मेघ रुपहले राज छुपा कर जीवन को हरसाता है ।
सागर गहरे राज समा कर जीवन को अपनाता है।
ज्यों काले काले मेघा आकर बूंद-बूंद जल ,बरसाता है ।
नदिया नाले पोखर गड्डे जल ही जल से, भर जाता है ।
प्यासा राही प्यास बुझा कर मन में मन को ,समझाता है।
मेघ रुपहले राज छुपा कर जीवन को, हरसाता है।
सागर गहरे राज समा कर जीवन को अपनाता है।
अब जलधारा की एक बूंद भी ऐसे व्यर्थ, नहीं करना ।
जल का संग्रह ऐसे करना जैसे धन संग्रह करना।
राही मृग तृष्णा में भटके मरुथल जल दर्शाता है ।
मेघ रुपहले राज छुपा कर जीवन को, हरसाता है ।
सागर गहरे राज समा कर जीवन को अपनाता है।
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम