जल से सीखें
गिरता हिम गिरि से झर,झर,झर
किन्तु हार कर कभी न रुकता ।
कंकड, पत्थर सब सहता वो
किन्तु मधुरता कभी न तजता ।
सीखो जल से जीने का ढंग
कैसे गिर कर भी बढ़ना है ?
कोई कितनी कटुता घोले
कैसे निज को मृदु रखना है ?
जल राशि अपार दिखी जब भी
खुद को दुकूल में बांध लिया ।
प्रभुता के मद मे नही रुका
नित करता पथ विस्तार चला ।
सदियों से सूर्य है तपा रहा
पर तजी कभी न शीतलता ।
कठिन पहाड़ भी काट गयी
इसकी सरल मृदुल सी कोमलता ।