जल सिंधु नहीं तुम शब्द सिंधु हो।
जल सिंधु नहीं तुम शब्द सिंधु हो।
जल सागर नहीं तुम शब्द सागर हो।
रत्नाकर हो शब्दो के तुम,कवियों के शब्द सुधाकर हो।
हो सहस्त्र कोटि की शब्द राशि
जैसे जल सिंधु में होती अनन्त जल राशि।
मन की अभिव्यक्ति के क्षीर सागर हो,शब्दों के अविरल और अटल महासागर।
जैसे जल सिंधु बसुधा की प्यास बुझाता है वैसे ही शब्द सिंधु हम कवियों की प्यास बुझाता है।
जैसे जल सिंधु रूपी सागर में खिलता हुआ कमल मुस्काता है।
वैसे ही शब्द सिंधु रूपी सागर में शब्दों की वाणी का लिखता हुआ कमल मुस्काता है।
देव सुरेश,और दानव ने किया समुद्र सिंधु में जल मंथन ।
लेकिन इस शब्द समुद्र सिंधु मे सुरेश और समस्त देव तुल्य कवियों ने किया विचार मंथन।
जल सिंधु का तो इस पृथ्वी देवी पर अनंत युग और काल खंड बीता है लेकिन हम सबके प्यारे नये नवेल शब्द सिंधु का केवल अभी एक बर्ष बीता है।
कार्तिक नितिन शर्मा