जल कब बरसेगा —- घनाक्षरी
तप तप तप रहा, तपन से धरातल।
जल कब बरसेगा,सबकी पुकार है।।
गरम गरम लू से,बदन ये जल रहा।
नभचर जलचर,सबकी हुंकार है।।
सही तपन न जाए,अब बदरिया छाए।
बुझाए बुझाए प्यास ,सबकी गुहार है।।
सुन सबका विलाप,दिखा प्रकृति प्रताप।
गिरी रिमझिम अब,जल की फुहार है।।
राजेश व्यास अनुनय