जल्दबाजी में कई बार ‘जलेबियां’ बंट जाती है !
शनिवार को महाराष्ट्र और झारखंड के साथ पांच राज्यों में हुए उपचुनाव का परिणाम घोषित होगा। दोपहर तक लगभग स्थिति स्पष्ट हो जाएगी। दोनों चरणों को मिलाकर कुल 417 सीटों के नतीजों पर देशभर की नजर रहेगी। मतदान सम्पन्न होते ही ‘बाबाजी’ की डुगडुगी (एग्जिट पोल) भी बज गई है। पिछले कुछ चुनावों में वैसे तो बाबाजी की बातें कम ही सार्थक सिद्ध हुई है। फिर भी मनोरंजन मात्र के रूप में कहीं खुशी कहीं ग़म के माहौल को क्रिएट करने में इनका पूरा रोल रहता है।
भिन्न-भिन्न पंथ वाले बाबाओं ने अपने-अपने हिसाब से संभावनाओं का आंकलन जनता के सामने पेश किया है। बाबा जी ने दोनों स्थानों पर अपने-अपने हिसाब से सरकारें भी तय कर दी है। ज्यादातर बाबाओं की माने तो महाराष्ट्र में भाजपा युक्त महायुति गठबंधन की सरकार बनती दिख रही है। दूसरी तरफ झारखंड में भी भाजपा युक्त एनडीए गठबंधन की सरकार बन सकती है। बाबाजी का आंकलन ठीक रहा तो महाराष्ट्र में सरकार रिपीट हो सकती है तो झारखंड में भाजपा गठबंधन की वापसी। शेष बाबाजी इसके विपरीत बता रहे हैं। उनका मानना है कि परिणाम चौंकाने वाला होगा।
वैसे तो देखा जाये तो बाबा जी हमेशा बताते तो संभावना ही है, पर हमारे जैसे अल्पज्ञानी उनकी बातों को कुछ और ही समझ जाते हैं। हरियाणा के प्रसिद्ध सूर्य कवि पंडित लखमीचंद ने अपने ‘पिंगला भर्तृहरि‘ के किस्से में बड़ी अच्छी दो पंक्तियां लिखी थी। जो इन बाबाओं के आंकलन और हमारा उन पर विश्वास किए जाने पर चरितार्थ होती है। उन्होंने लिखा था –
किसने देख्या स्वर्ग भरथरी , आपा मरे बिना
क्यूंकर आज्या सब्र आदमी कै, पेटा भरे बिना।
सीधा सा भाव है कि जब तक सही रूप में सामने कुछ न आ जाए तब तक उस पर विश्वास किया जाना उचित नहीं है। दावे तो कितने ही किसी से करवा लो। इनकी कोई लंबी उम्र थोड़े ही होती है। जैसे ही पोल खुलती है, दावे हवा हो जाते हैं। वैसे भी आपको कुछ बताने की जरूरत नहीं। समझदारी में कोई आपसे आगे थोड़े ही हो सकता है। फिर भी स्मरण तो करा ही सकते हैं। ईश्वर से सीधे साक्षात्कार करवाने वाले कई बाबाओं के प्रवचन आप और हम जैसे लाखों-करोड़ों लोगों ने बड़े ही भक्तिमय और तन्मय भाव से सुने हैं। जिस हिसाब से वो अपनी ओजवाणी में निष्काम कर्म और परमात्मा की बात करते हैं। लगता है कि परमात्मा से सीधे रूप में हमारा कोई साक्षात्कार करा सकता है तो वे ही है। ऐसे ही कुछ बाबाओं के उदाहरण हमारे सामने हैं। जिनके माध्यम से हम परमात्मा से मिलन करना चाह रहे थे, वे व्यक्ति वैशिष्क कर्म कर शांतिमयी अनन्त साधना के लिए सुधारगृहों में जा बैठे हैं। अब कर लो साक्षात् मिलन।
अब बात इन बाबाओं (एग्जिट पोल वाले) के दावों की कर लो। इन पर जरूरत से ज्यादा भरोसा जानलेवा साबित हो सकता है। दूर क्यों जाएं बात डेढ़ माह पहले हरियाणा में हुए चुनावों की कर लें। सारे के सारे बाबाजी जलेबिया बंटवा रहे थे। इनके कहने पर बड़े बड़े बैंक्विट हाल बुक हो गए थे। ढोल नगाड़े, बैंड बाजे, भव्य सुसज्जित रथ, शाही पकवान। सब तैयार करवा लिए थे। बस इंतजार दुल्हन रूपी जीत का था। गाजे बाजे के साथ बारात ‘ दुल्हन हम ले जायेंगे ‘ गीत गाती चल पड़ी। रास्ते में ही सूचना उल्टी मिल गई। दुल्हन तो चुपके से दूसरे दूल्हे का वरण कर गई। सारी की सारी जलेबियां धरी की धरी रह गई।
माहौल को देखते हुए स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े लोगों ने इस बार एडवाइजरी भी जारी की है। इसके तहत साफ निर्देश दिए गए हैं कि जब तक चुनाव आयोग की वेबसाइट पर परिणाम अपलोड न हो जाए,तब तक भावनाओं को कंट्रोल में रखें। जल्दबाजी न करे। हलवाईयों से बात खोलकर रखे। हो सके तो दूसरे दल वालों से बनकर रखें। इससे विपरीत परिस्थिति में नुकसान की भरपाई होने में सहजता रहेगी। एडवाइजरी में ये भी कहा गया है कि इन बाबाओं(एग्जिट पोल) की बातों के चटखारे तो ले सकते हैं, पर इस पर भरोसा नहीं करना। समय से पहले और वक्त से ज्यादा की उक्ति को ध्यान में रखते हुए सही समय का इंतजार करना है। बशीर बद्र की इन पंक्तियों को गुनगुनाते हुए ईवीएम माता रानी की पूजा करना और आल इज वेल, आल इज वेल ,कहकर अपना सीना थपथपाते रहना।
दुश्मनी जमकर करो लेकिन ये गुँजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जायें तो शर्मिन्दा न हों’
लेखक;
सुशील कुमार ‘नवीन‘, हिसार
96717 26237
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार है। दो बार अकादमी सम्मान से भी सम्मानित हैं।