जला दिए
कुछ पन्ने तुम्हारी मोहब्बत के हमने जला
दिए
कुछ हसरतों को मेरी तुम सबने जला
दिए
आंसुओं से क्या भिगोया मैंने मोहब्बत की
किताब को,
फिर सारी किताब को हमारे गम ने जला
दिए
-सिद्धार्थ गोरखपुरी
कुछ पन्ने तुम्हारी मोहब्बत के हमने जला
दिए
कुछ हसरतों को मेरी तुम सबने जला
दिए
आंसुओं से क्या भिगोया मैंने मोहब्बत की
किताब को,
फिर सारी किताब को हमारे गम ने जला
दिए
-सिद्धार्थ गोरखपुरी