जलाओ सब मिल दीपक
कुंडलियाँ
दीपक जलता प्रेम की,
सब घर आँगन द्वार।
मिल-जुल कर रहना सभी,
खुशियाँ मिले अपार।।
खुशियाँ मिले अपार,
पहन नव नव परिधानें।
बाँटते सब मिष्ठान,
प्रेम के सब दीवाने।।
कह डिजेन्द्र करिजोरी,
नही हो दुख का दीमक।
सब अवगुण निज त्याग,
जलाओ सब मिल दीपक।।
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रचनाकार डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”
पिपरभावना, बलौदाबाजार(छ.ग.)
मो. 8120587822