जलहरण घनाक्षरी
जलहरण घनाक्षरी
8,8,8,8, पर यति अंत 11
वरदा वरदायिनी, वागीश वीणावादिनी,
शीश पे मुकुट अंग, श्वेत धारिणी वसन।
हंसासिनी हे शारदे, माँ कष्ट से उबार दे,
मैं अर्पित करता हूँ, मातु आपको सुमन।
भगवती हे भारती, भक्त करे है आरती,
दोनों हाथ जोड़कर, दास करता नमन।
बुद्धि का विकास कर, प्रार्थना स्वीकार कर,
ध्यानमग्न बैठकर, दास करता हवन।
अदम्य