जरूरतें
जरूरतें
राघव के पिता जी राघव की हर जरूरत पूरी करते थे। फिर भी राघव अपने पिता जी से झगड़ता और कहता तुमने हमारे लिए क्या किया। किन्तु पिता जी हँसकर बात को टाल देते थे उसे कुछ नही कहते, राघव एक दिन परदेश चला जाता है और वहां जाकर नौकरी करने लगा। उधर उसके माँ बाप बूढ़े हो चुके थे जो अब कुछ कर भी नही सकते थे। राघव को महीने में अच्छी पगार मिलती है किन्तु वह घर में रुपया भी नही देता था। माँ बाप के पास फ़टे कपड़े और खाने को भोजन भी सही नही था। जब पिता जी ने राघव से कुछ रुपये मांगे तो वो चिड़चिढ़ाकर तेज आवाज़ में बोला मै तुम्हारा बोझ नही उठा पाऊंगा मेरी पगार से तो मेरी खुद की जरूरतें भी पूरी नही हो रही । तो उसके पिता ने जबाब दिया बेटा आज तुम अकेले हो तो खर्चा पूरा नही हो रहा तुम्हारा और मैं तो पूरे परिवार का खर्च कैसे उठाता था उस पर भी तुम कहते थे की मैंने तुम्हारे लिए क्या किया। अब राघव सिर झुकाते बोला पिता जी मुझे माफ कर दो मैंने आपका बहुत दिल दुखाया।
अभिनव मिश्र अदम्य