जरा आँखे चुरा मत
****** जरा आंखें चुरा मत ******
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सुनो बात मन की सदा वो बता मत,
कदम जो बढ़े सामने तो हटा मत।
निशानी मिले जो कभी प्यार की जो,
नज़र प्रेम की है जरा आँखें चुरा मत।
ख़ता का सिला भी हमें ही मिला है,
खफा हो दफा भी हुए तो सुना मत।
रज़ा तो फ़िजा की यही सदा होती,
सुनो जो जमाने कहा वो दिखा मत।
बहुत बार सोचा कि छोड़ें जगत को,
दुआ गर खुदा की हुई गमज़दा मत।
यहाँ मन भरा यार सीरत वफा से,
शमां प्यार की ये सनम तू बुझा मत।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)