#जय_गौवंश
#जय_गौवंश
■ लोकपर्व : गौ-वत्स द्वादशी
【प्रणय प्रभात】
हमारी सनातन संस्कृति में हर छोटे-बड़े तीज-त्यौहार का महत्व एक लोकपर्व के रूप में है। जिन्हें शाश्वत परम्पराओं में सदियों से भरोसा रखने वाले भारतवंशी आज भी अपनाए हुए हैं। इन्हीं में एक लोकपर्व है “गौ-वत्स द्वादशी।” जिसे लोकबोली में “बछ-बारस” के नाम से हिंदी-भाषी क्षेत्र में जाना जाता है। जो भाद्रपद कृष्ण द्वादशी को मनाया जाता है।
संतति-सुख सहित संतान की सुरक्षा व समृद्धि की कामना इस पर्व के मूल में है। कार्तिक माह में दीपावली से पूर्व मनाई जाने वाली “अहोई अष्टमी” की तरह। अंतर बस इतना सा है कि इस पर्व पर मातृत्व की प्रतीक “गौ-माता” और वात्सल्य के प्रतीक “बछड़े” की पूजा की जाती है। दोनों के प्रति मानवीय कृतज्ञता की भावनाओं के साथ। पंचगव्य प्रदान करने वाली गौ-माता के देवत्व को लेकर सभी परिचित हैं। गौ-वत्स (बछड़े) के वृष (बैल) के महत्व से भी सब अवगत हैं।
इस पर्व पर माताओं द्वारा मिट्टी से निर्मित गाय-बछड़े की मूर्ति का पूजन श्रद्धा के साथ किया जाता है। इस दिन हल और बैल की मदद से उत्पन्न अनाज का सेवन निषिद्ध है। अतः माताएं इस दिन गेंहू के बजाय ज्वार, बाजरा, चावल, चने व अन्य प्रकार के मोटे अनाज आदि का सेवन करती हैं। चाकू से काटी जाने वाली कोई भी वस्तु इस दिन नहीं खाई जाती। फिर चाहे वो फल हो या सब्ज़ी।
प्रावधान के अनुसार गाय-बछड़े की विधि-विधान से पूजा के बाद माताएं अपनी संतान के पैरों के अंगूठे को पानी से धोने के बाद उन्हें तिलक लगाती हैं और उनका मुंह बेसन से बनी मिठाई से मीठा कराते हुए उन्हें दक्षिणा देती हैं। निस्संदेह, आज कृषि-प्रधान देश में परंपरागत खेती बीते कल की बात बन चुकी हो। निस्संदेह हल और बैल की उपादेयता आधुनिक उपकरणों व संसाधनों ने समाप्त कर दी हो, लेकिन गौ-वंश के प्रति सम्मान आह्मज भी है। भले ही वो कुछ विशेष दिवसों या पर्वों तक सिमट कर रह गया हो।
प्रतीकात्मकता पर निर्भर आज के युग में भी ऐसे पर्व अपना संदेश दे ही रहे हैं। आज के पर्व का संदेश भी यही है कि हम गौ-वंश के प्रति अपनी आस्था को नवजीवन दें। मिट्टी की मूर्ति के बजाय गौ-वंश का पूजन साक्षात स्वरूप में करें। वो भी वर्ष में एकाध या दो-चार दिन नहीं, प्रतिदिन। दोनों समय का भोजन बनाते हुए पहली रोटी गौ-माता के नाम से निकाल कर। सड़कों पर भटकने को विवश निरीह गौ-वंश (विशेषकर बूचड़खानों के निशाने पर बने बछड़ों) के प्रति दया, करुणा व सम्वेदनाबजागृत करते हुए। हम ऐसा आनंद के साथ करते आ रहे हैं, इसलिए यह आग्रह व आह्वान कर सकते हैं। इस लोकपर्व की मंगलकामनाओं के साथ। जय गौ-माता, जय गौ-वंश।।
😊😊😊😊😊😊😊😊😊
-सम्पादक-
●न्यूज़&व्यूज़ (मप्र)●