जय श्री राम
जय श्री राम
परो अपि हितवान् बन्धुबन्धुः अपि अहितः परः!
अहितः देहजः व्याधिः हितम् आरण्यं औषधम् !!
अगर कोई अपरिचित व्यक्ति हमारी सहायता करे, तो उसे अपने परिवार के सदस्य की तरह ही महत्व देना या समझना चाहिए। और अगर हमारे परिवार का व्यक्ति हमको नुकसान पहुंचाए अथवा हमारी सहृदयता का दुरुपयोग करे, तो उसे महत्व देना बंद करना ही उचित है। जैसे शरीर के किसी अंग में चोट लगने पर हमें अपने ही अंग से पीड़ा मिलती है, वही जंगल की औषधि हमारे लिए लाभप्रद होती है।
जय हिन्द