#जय श्री राम !
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🚩 ★ #जय श्रीराम ! ★ 🚩
हे अयोध्या के राजा भेजो तो हनुमंत को
मनम्लेच्छ माने नहीं वृक्षों पत्थरों के बिना
हे राघव !
शिलापूजन आधारस्थापनोपरांत दीपमालाहित दीपक सहेज लिए हैं मैंने।
मन हर्षित तो है परंतु शंकित भी है। वर्तमानकाल के श्रेष्ठ ब्राह्मणों, सुयोग्य ज्योतिर्विदों द्वारा मुहूर्त निर्णीत है। तब भी बृहस्पति और शनि स्वराशि में रहते हुए वक्रगति से चल ही रहे हैं? कुछ अघटित तो नहीं घटेगा न! यश के अभिलाषी को यश तो मिलेगा न !
रजतशिला पर कलिसम्वत् ५१२१ अंकित नहीं है। श्रीविक्रम सम्वत् २०७७ भी नहीं लिखा। भाद्रपद कृष्ण द्वित्तीया तिथि दिवस बुधवार भी वहां लिखा नहीं दिखता।
वहां लिखा है पाँच अगस्त दो हज़ार बीस? यह क्या है? यह कैसा और किस उपलक्ष्य में प्रारंभ हुआ सम्वत् है? शताब्दियों बाद माँ भारती की संतानें जानेंगी कि यह उस कल्पित चरित्र के नाम से चलाया गया कपट था जिसके मतानुयायियों में से कुछ उसका जन्म इस सम्वत् से चार वर्ष पूर्व, कुछेक सोलह वर्ष और कुछ साठ वर्ष पूर्व माना करते थे। फिर यह सम्वत् किस उपलक्ष्य में चालू हुआ?
और यह भी जानेंगे मनुवंशज कि चतुर्युगी गणना अथवा व्यवस्था का उपहास किया गया था उस दिन।
प्रभु ! वहां विजयदायी अभिजित् मुहूर्त भी अंकित नहीं है। वहां एक नाम अंकित है। आप तो जानते हैं सियावर राम ! परंतु, भावी संतानें कैसे जानेंगी कि इस युग की उर्मिला ने देशधर्महितार्थ जिसे अग्नि के समक्ष दिए गए वचनों से मुक्त कर दिया यह नाम इस पावनधरा के उसी प्रधानसेवक का नाम है?
हे भरताग्रज ! इस शुभ घड़ी का आगमन पाँच शताब्दियों की विनती के उपरांत जड़बुद्धियों के हृदयपरिवर्तन का परिणाम नहीं है और न ही नल, नील के कौशल से उपजा सेतु है। यह तो उच्चतम अदालत, प्रभु इसे अदालत ही जानना न्यायालय नहीं, हां, उच्चतम अदालत द्वारा लिखित प्रहसनरूपी नाटक का एक अंक है।
उच्चतम अदालत का कहना है कि उसका निर्णय आस्था नहीं तथ्यों पर आधारित है? और तथ्य यह बताए गए हैं कि वहां एक विशाल संरचना भूमि के नीचे मिली है जो कि हिंदुओं की पूजास्थली थी। तथ्य यह भी है कि बाबरी मस्जिद मंदिर को ढहाकर नहीं बनाई गई थी? तथ्य यह भी है कि लगभग सत्तर वर्ष पूर्व वहां बलात् मूर्तियां स्थापित कर दी गईं? तथ्य यह भी है कि षड्यंत्रपूर्वक बाबरी मस्जिद का ध्वंस किया गया? तथ्य यह भी है कि वो भूमि हिंदुओं की है? और तथ्य यह भी है कि बाबरी मस्जिद के पुनर्निर्माण हेतु भूमि प्रदान करनी होगी?
हे राजा राम ! वर्तमानकाल में राजसत्ता के विभिन्न अंगों में सर्वाधिक विकलांगता न्यायव्यवस्था(?) में है? जिसे यह ज्ञान नहीं कि यह पूरी धरती श्रीराम की है। जिसे यह भी नहीं पता कि जिस भवन को विवादित ढांचा कहकर ढहा दिया गया वो कौशल्यानंदन राम का मंदिर ही था। जिस नरपिशाच के नाम से मानवता कलंकित हुई उसके नाम से धर्मस्थान? यदि कहीं हो भी तो एक क्षण गंवाए बिना उसे धराशायी कर देना चाहिए? और इस्लामी वास्तुकला? उसका कोई एक ग्रंथ? उसका कोई एक विद्वान? कहीं भी इन छलावों का अस्तित्व नहीं है?
तथ्यों की ऐसी कालिख और बुद्धि का ऐसा अकाल कि भविष्य में कोई भी गुंडा बदमाश किसी के भवन पर बलात् अधिकार जमाने के बाद पुरुस्कार का अधिकारी भी होगा।
हे कमलनयन ! एक राहू भेष बदलकर मनुपुत्रों की पांत में बैठने की जुगत में है। जिन आसुरी शक्तियों ने प्राणपण से प्रयत्न किया कि आपका मंदिर नहीं बने इस महान अवसर पर उनका विश्वास अर्जित करने की मूढ़ता जगने को है।
सर्वकालिक विजेता राम ! मेरे आराध्यदेव भगवान नीलकंठ देवाधिदेव महादेव के आप आराध्यदेव हैं इसी कारण आप मेरे लिए पूजनीय हैं। किंतु, नंदी महाराज और रुद्रदेव के बीच अभी दीवार खड़ी है?
चारों युग जिनकी महिमा गाया करते हैं। द्वापरयुग में जिन्होंने पुनः गीताज्ञान का संदेश दिया। आसुरी शक्तियों के संहारक, धर्म की पुनर्स्थापना के महान कर्ता की जन्मस्थली ज्ञानबावली मलेच्छमल से अभी कलंकित है।
अश्वशाला की लीद बुहारने वाले आज के दिन बगलें बजाने वाले ऐसे कापुरुष भी हैं जो रिरियाया करते हैं कि हमें हमारे अयोध्या काशी मथुरा दे दो हम तीन हज़ार पर अधिकार छोड़ देंगे। उन भिक्षुकों को यह कहने का अधिकार किसने दिया प्रभु? मैंने तो नहीं दिया।
मेरे आदर्श अंजनिसुत महाबली हनुमान हैं। मैं अपने मन वचन और कर्मों के प्रति वैसा ही नैष्ठिक हूं जैसे सौमित्र हैं। तभी तो अपने को आपके सेवकों के सेवकों में गिन पाता हूँ।
हे सकल जगत के स्वामी प्राणाधार प्रभु श्रीराम आपको अगणित धन्यवाद कि आपने दामोदरसुत हीरानंदन-सा मुखिया प्रदान किया। परंतु, विश्वास अर्जन का अंधत्व अब नहीं सुहाता। तभी तो कहता हूं कि
“हे अयोध्या के राजा
भेजो तो हनुमंत को
मनमलेच्छ माने नहीं
वृक्षों पत्थरों के बिना . . .”
★ कौशल्यानंदन के नाम श्रीरामजन्मभूमि मंदिर की नींव रखने से पूर्व लिखी गई पाती।
आपकी चरणरज
वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२ — ७०२७२-१७३१२