रमेशराज की कहमुकरी संरचना में 10 ग़ज़लें
ये अश्क भी बे मौसम बरसात हो गए हैं
दिली नज़्म कि कभी ताकत थी बहारें,
लम्हें संजोऊ , वक्त गुजारु,तेरे जिंदगी में आने से पहले, अपने
महामहिम राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू जी
सूनी आंखों से भी सपने तो देख लेता है।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
तेरी सारी बलाएं मैं अपने सर लेंलूं
दिल में दर्द है हल्का हल्का सा ही सही।