जय दुर्गे
जय दुर्गे दुर्निवार कर ,
दे अभय हमें ।
जगत सिंधु ,के ग्राहों पर ,
दे विजय हमें ।।
कलिकाल कुठार
लिए जग में
प्रतिपल विचरित ।
हैं व्यथित भक्त जन
सारे , अन्तस् में
कंपित ।।
कर कृपा निराली अद्भुत माँ ,
दे निलय हमें ….
है सर्वत्र कुमति
छाई
पीड़ित जन जन ।
प्रकृति विरुद्ध
विचरते हैं
मानव के मन ।।
कृपा सिंधु में सरिता सम
दे विलय हमें ….