जय जय जय जय बुद्ध महान ।
राज पुत्र ने त्याग दिया,
घर महल दुखदायी संसार,
अपने मन को वश में करने,
दुःख के जड़ का सत्य पकड़ने,
निकल चला शाक्य पुत्र महान,
जय जय जय जय बुद्ध महान ।
अनोमा नदी के तट पर जाकर,
त्याग दिया राजशाही वस्त्र और आभूषण,
केश काट छ्न्दक को दे कर,
धारण किये चीवर का नया संसार,
बढ़ा अकेले खोजने दुःख के कारण को,
जय जय जय जय बुद्ध महान ।
भेंट किया महान ऋषि मुनी और गुरुओ से,
अर्जित किया उन सबसे ज्ञान,
मिला नही उनके प्रश्नों का उत्तर,
किया प्रणाम और बैठ गये लगाने ध्यान,
छः वर्षों तक किया तप अपार,
जय जय जय जय बुद्ध महान ।
उरुवेला जब पहुंँचे सिद्धार्थ,
किया सुजाता ने खीर का दान,
तत् पश्चात् ले लिया संकल्प
पीपल वृक्ष के छाँव के तल,
मिल जाए मेरे प्रश्नों का हल,
जय जय जय जय बुद्ध महान ।
वैशाख पूर्णिमा की वो चांँदनी रात,
दिव्य ज्ञान का हुआ प्रकाश,
सिद्धार्थ पुत्र अब ‘बुद्ध’ बने,
बुद्धम् शरणम् गच्छामि,
जन जन में यह गूँज उठा,
जय जय जय जय बुद्ध महान ।
रचनाकार-
बुद्ध प्रकाश,
मौदह हमीरपुर।