जय अंजनिनन्दन
रामचन्द्र जी से स्नेह, बज्र के समान देह।
वीर हनुमान, माता अंजनी के लाल हैं।।
बुद्धि के निधान हैं जो जानते हैं छन्दशास्त्र।
काटते समस्त जाल, राक्षसों के काल हैं।।
खौलता समुद्र उग्र, लांघते गए समग्र ।
हाथ में गदा अमोघ ,शक्तियाँ विशाल हैं।।
मारुति के प्राण राम, काम हैं बड़े महान।
लाल- लाल परिधान , दंष्ट्र विकराल हैं।।