जमीर मरते देखा है
बच्चों को होटल में काम करते आंखों से देखा है,
नन्हे बेबस लाचारों को अपना बचपन खोते देखा है।
दहेज देकर भी बेटी को बेवजह सताया जाता,
मैंने मां बाप को अपनी बेटी के लिए रोते देखा है।
बच्चे भी मां-बाप के साथ अन्याय कर गुजरते हैं ,
मैंने मां बाप को बच्चों के लिए तड़पते देखा है।
कैसी नादानी बच्चों की यह कैसा निर्णय होता है,
बच्चों वाले मां बाप को वृद्धा आश्रम में रोते देखा है।
भंडारे उनके चलते है पर मां के लिए नहीं रोटी है,
मैने स्वार्थी औलादों का व्यवहार बदलते देखा है
स्वार्थ के लिए लोगों गिरगिट सा रंग बदलते देखा है
मतलब के लिए मैने लोगों का जमीर मरते देखा है।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~`
स्वरचित एवम मौलिक
कंचन वर्मा
शाहजहांपुर
उत्तर प्रदेश