जमीं नहीं है, फलक ही फलक है l
जमीं नहीं है, फलक ही फलक है l
गमों का यहाँ कोई ना हक़ है ll
अंधेरा नहीं है, उजाला हक़ है l
सही सुखों पर अब कोई ना शक है ll
क्या क्या किया, धकधक ही धकधक है l
ना सुन पाया, घडी की टक टक है ll
कैसा कैसा पढ़ा पढ़ाया सबक है l
सिर्फ अपनों पर, बकबक ही बकबक है ll
कोई न सही पहुंच, मंजिल तक है l
टूटी फूटी, उबड़ खाबड़ सड़क है ll
कैसा रस, रंग ओ ढंग है l
जीवन तलती, तडक भड़क है ll
खून बहे हैं, सड़े है, जले है l
मानवता की बड़ी कम झलक है ll
चालाक चाल चले, बेधड़क है l
काल चाल भी, बड़ी बेधड़क है ll
भाये सड़ी गली जली सुखी महक है l
विषय प्यास की गर्म दहक ही दहक है ll
अरविन्द व्यास “प्यास”
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