जमाने को खुद पे
जमाने को खुद पे इतराते हुए देखा है
दिल कीआगअश्को से बुझाते हुए देखा है
महबूब को मोहब्बत से मुह चुराते हुए देखा
चंद मिनटों को घंटों में बिताते हुए देखा है
खबर थी मुझे इस तरह जख्म मिलेंगे मुझे
मैं चौराहे पर खड़ा रहा इस इंतजार में
के वो गुजरेंगे अभी इसी रह गुजर से
इंतेहा तो तब हुई के न वो आये न
ना ही उनका पैगामें ए दुरुस्तगी ही
बड़ी गजब चीज है महबूब की कसम लेना
यू समझो कि गुड़ का हंसिया मुह में लेना
कसम पकड़ी तो महबूब है सफा दफा
जो अगर तोड़ी तो हुए हम बेवजह बेवफा
इकरार भी है इनकार भी है
मुझ पर यू ऐतबार भी है
या यूं कह दूं मुझसे प्यार भी है
कहने को तो बहुत अफसाने है
न कहने के भले ये बहाने है
जब मन का मेल न मिले जग में
तो फिर खुद के हम दीवाने है