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14 Nov 2023 · 1 min read

जमाने को खुद पे

जमाने को खुद पे इतराते हुए देखा है
दिल कीआगअश्को से बुझाते हुए देखा है
महबूब को मोहब्बत से मुह चुराते हुए देखा
चंद मिनटों को घंटों में बिताते हुए देखा है

खबर थी मुझे इस तरह जख्म मिलेंगे मुझे

मैं चौराहे पर खड़ा रहा इस इंतजार में
के वो गुजरेंगे अभी इसी रह गुजर से
इंतेहा तो तब हुई के न वो आये न
ना ही उनका पैगामें ए दुरुस्तगी ही

बड़ी गजब चीज है महबूब की कसम लेना
यू समझो कि गुड़ का हंसिया मुह में लेना
कसम पकड़ी तो महबूब है सफा दफा
जो अगर तोड़ी तो हुए हम बेवजह बेवफा

इकरार भी है इनकार भी है
मुझ पर यू ऐतबार भी है
या यूं कह दूं मुझसे प्यार भी है

कहने को तो बहुत अफसाने है
न कहने के भले ये बहाने है
जब मन का मेल न मिले जग में
तो फिर खुद के हम दीवाने है

5 Likes · 3 Comments · 244 Views
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