जब से वो मनहूस खबर सुनी
दोस्त ! जब से वो मनहूस खबर सुनी
लगती हैं झूठ अभी भी ,शायद वहम हो
पागल मन को कैसे समझावू ?
जानेवाले लौटके वापस नहीं आते कभी
दोस्त ! तुम्हारे बारे में सोचता रहता हूँ
उस दिन रात में सोते समय क्या सोचा होगा
नहीं पता होगा यह हमारी आखरी रात
कल का सूरज , दिन मेरे लिए नहीं होगा
दोस्त ! तुम्हे जितना भुलना चाहूं
उतना ही याद आते हो ,आवोगे
कहीं से आवाज दोगे हमेशा की तरह
फिर अजबसि ख़ामोशी , बेचैनी, भारी मन
दोस्त ! क्या हाल होगा घर में तुम्हारे
सोचके घबराता हूँ , उन्हें दुःख सहने की
शक्ति प्रदान करे यही ईश्वर से प्रार्थना
दुःख की धार कम होने को वक्त तो लगता ही हैं