जब मैं अकेला पड़ गया !!
ये ऐसा अक्सर मेरे साथ हुआ,
जब मैं अकेला पड़ गया रे,
जीवन के संघर्ष में,
जीने के तौर तरीके में,
पठन पाठन से लेकर,
खान पान के प्रबन्धन में,
जब मैं अकेला पड़ गया,
कि अक्सर मैं अकेला पड़ गया ,!
ये कुछ लोग तो मेरे पास ही थे,
जो साथ में भी नजर आ रहे थे,
किन्तु क्षणिक समय के ही लिए,वह दिखे,
और फिर विमुख भी हो लिए,
निरंतरता में वो नहीं रहे,
मैं अकेला स्वयं को पाता रहा,
और फिर सोच विचार कर जो महसूस किया,
कि मैं अकेला ही खड़ा दिखा,
अक्सर यह मेरे साथ ही हुआ,
जब मैं अकेला ही पड़ गया !
मैं ऐसा भी तो नहीं कह सकता,
कि कोई मेरे साथ नहीं चला था ,
किन्तु सिर्फ अपने हित साधन तक,
जब तक हित नहीं था सधा,
वो संग संग मेरे साथ चला,
और जैसे ही मुझमें ठहराव दिखा,
वह अचानक से ही लुप्त हुआ,
मतलब परस्त वह ऐसा बना,
कि अब मुझे ही कोसने वह लगा,
तब मैं विस्मय से था भरा,
मैं तो अकेले ही था चल रहा,
यह अक्सर मेरे साथ हुआ,,
जब मैं अकेला ही पड़ गया !
समय एक सा कहां रहता है,
कब कोई सदा किसका हुआ है,
यह सदमा बड़े बड़ों तक को हिला गया है,
उन्हें भी सदैव इसका सिला रहा है,
कभी जो उनके मुफीक हुआ करते थे,
वह अचानक उसके विरुद्ध खड़े थे,
अपने साथ तो यह अक्सर हुआ है,
जब मैं अकेला ही पड़ गया रे!
मेरे आचार विचार भी इतने खराब न थे,
जो कभी किसी से नहीं मिले थे,
फिर ऐसा वो क्या हो गया था,
जो उसने पाला बदल दिया था,
मैं कैसे अपने को समझाऊं,
मैं कैसे अपने को बदल पांऊ,
ना इधर का रह पाया,
ना उधर का हो पांऊ,
मैं अलग थलग सा स्वयं को पांऊ,
जैसे चला था, वैसे ही चलता जांऊ,
फिर सोच विचार में मैं पड़ जांऊ,
है क्या कमी मुझमें रह गई,
जो अक्सर मैं अकेला पड़ गया हूं,
जब ऐसा मेरे साथ हुआ है,
मैंने ऐसा क्या किया है,
जो मैं अकेला पड़ गया रे!!