जब मेरी नज़र से देखोगे तब मेरी दहर को समझोगे।
जब मेरी नज़र से देखोगे तब मेरी नज़र को समझोगे।
तुम मेरी नज़र से बाहर रह क्या मेरे दहर को समझोगे।
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हंसते चेहरों की चांदी में रोते चेहरों की कालिख है।
इस राज को तुमने समझ लिया तो मेरे शहर को समझोगे।
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वापसी टिकट लेकर आते तुम ऐसा एक लिफाफा हो।
आएगा बुलावा उस घर से जब तक इस घर को समझोगे।
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सुर ताल खूब जंजाल खूब आकाश खुले हैं जाल खूब।
यह सब कुछ लेकर ग़ज़ल कहो जीवन की बहर को समझोगे।
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ख्वाबों की जिद को पहचानो हाथों की ताकत को तौलो।
कब तक तुम माथा रगड़ोगे कब तक उस दर को समझोगे।
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शिकवा ना करो रुसवा ना करो खामोश रहो सब देते रहो।
जब उसकी तरह हो जाओगे तुम खुद ही शजर को समझोगे।
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उगता सूरज चढ़ता दरिया कब वक्त की परवाह करता है।
रफ्तार “नज़र” जब कम होगी रफ्तारे गजर को समझोगे।
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Kumar Kalhans