जब नाचा बैंक अधिकारी (हास्य व्यंग्य लेख)
एक हास्य प्रहसन में बैक कर्मचारियो को बैंक प्रवन्ध द्वारा दिये गये बैकिंग कार्यों के टारगेट को पूरा करते समय अपने आत्म सम्मान को ताख पर रख कैसे कैसे काम करने पडते है ? और कैसी कैसी परिस्थितियों से गुजरना पडता है ? इसका बहुत ही चुटिले तरीके से दिखाया
गया है ।
“”होता यह है कि एक बैंक अधिकारी एक नाचने वाली महिला के घर ॠण खाते मे वसूली के लिये जाता है ।
महिला लोन की चुकौती समय पर न कर पाने की सफाई में लोकडाउन में नाच गाने का धंधा मंदा होने का कारण बताती हैं।
इसी बीच एक दादा टाईप का ग्राहक नाच देखने आता हैं बस इसी पल बैक अधिकारी को ॠण वसूली की उम्मीद बंधती है। नाचने वाली महिला बैक अधिकारी का परिचय नये नाचा ( नाचा वह ट्रासं जेन्डर नचनिया होता है जो लावणी नृत्य मे महिला के साथ नृत्य करता है) के रूप में कराती हैं । दादा टाईप का आदमी बैंक अधिकारी को नृत्य करने का आदेश देता है। हतप्रत बैंक अधिकारी गिड़गिड़ाते हुए अपना परिचय देता है और नाचने से मना कर देता है लेकिन जैसे ही उसे वसूली टारगेट की याद आती है वो मन मार कर बडे भोंडे तरीके से नाचने लगाता , जिससे वो दादा टाईप का आदमी खुश हो जाता है महिला को पैसे देता है बैंक अधिकारी उस पैसे को महिला के लोन खाते में डाल देता है ।
अब महिला लोन वसूली का हवाला दे कर रोज शाम को बुलाती है इससे दर्शक उसे खुश होकर ईनाम में रूपये देते है और साथ ही मेले में नाच करने का आफर भी देती है। अब घबराया हुआ बैंक अधिकारी भागता है लेकिन थोड़ी ही देर में वसूली में आये नोटों को देखकर खुशी से उछल पड़ता है “” .
आज भी बैक कर्मचारियो का बैकिग व्यवस्था में प्रयोग हो रहे है जिसका प्रत्यक्ष /अप्रत्यक्ष प्रभाव बैंक कर्मियों पर पड़ता रहता है, लेकिन वसूली टारगेट, प्रबंधन का दबाब, बीबी बच्चों को पालना जैसे अनेक कारण हैं कि बैंक कर्मचारी कठपुतली हो गये हैं ।
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव सेवानिवृत्त बैंक कर्मचारी भोपाल