जब जब हमको याद करोगे..!
जब जब हमको याद करोगे,
रोओगे फ़रियाद करोगे।
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कैद़ रहे इन आँखों में जो,
अश्क़ों को आजाद करोगे।
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ख़ाक हुई ग़र बस्ती दिल की,
कैसे फिर आबाद करोगे।
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तन्हाई से रिश्ता रक्खा,
बुत से ही संवाद करोगे।
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दिल में नफ़रत पालोगे तो,
ख़ुद को ही बर्बाद करोगे।
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साथ सफ़र में मेरे रहकर,
राह नयी ईज़ाद करोगे।
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परदा रुख़ से ज्यों खिसकेगा,
लाख़ों को नाशाद करोगे।
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ज़ीस्त पहेली है यह मेरी,
कैसे हल उस्ताद करोगे।
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तूफ़ां भी सज़दे में होगा,
पुख़्ता ग़र बुनियाद करोगे।
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सुनकर इन ग़ज़लों को मेरी,
मिलकर सब इरशाद करोगे।
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पंख कटा हूँ एक “परिंदा”,
कब तक इस्तब्दाद करोगे।
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इस्तब्दाद — अत्याचार