*जब एक ही वस्तु कभी प्रीति प्रदान करने वाली होती है और कभी द
जब एक ही वस्तु कभी प्रीति प्रदान करने वाली होती है और कभी दुःख प्रदान करने वाली बन जाती है,तब निश्चय होता है कि कोई भी पदार्थ न तो दुखमय है और न सुखमय ही है।ये सुख दुःख तो मन के ही विकार है।ज्ञान ही परब्रह्म है और ज्ञान ही तात्विक बोध का कारण है।यह सारा चराचर विश्व ज्ञानमय ही है।उस परम विज्ञान से भिन्न दूसरी कोई वस्तु नहीं है।
शिवमहापुराण उमा संहिता
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