जबसे हम तुम्हारे दिल के फ्रेम में कैद हुए
जबसे हम तुम्हारे दिल के फ्रेम में कैद हुए हैं
ना मालूम दिल – आईने में कितने भेद हुए हैं
तड़प-तड़प रह गया हैं दिल आबोहवा वास्ते
मिलते नहीं बाहर – रास्ते क्यूं ऐसे कैद हुए हैं।।
मधुप बैरागी