जन गण मन की बात
बचपन में जब हम अपनी तोतली आवाज में “दण गन मन अदिनायत दय हे।” गाते तो माता-पिता का मन हर्ष से प्रफुल्लित हो जाता था जिसे गाने के बाद आज भी हम देश भक्ति की भावना से ओतप्रोत हो जाते है। पर अब जब अपने जिज्ञासु स्वभाव के कारण इसका इतिहास जानने का प्रयास किया तो पता चला कि आज ही के दिन यानी 27 दिसंबर को ही 1911ई० में यह पहली बार गाया गया था। पर तभी से यह विवादों के घेरे में है समय-समय पर बुद्धिजीवी वर्गो के द्वारा इसकी आलोचना की गई है जिनमें जन कवि रघुवीर सहाय प्रखर वक्ता राजीव दीक्षित एवं वर्तमान बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी इत्यादि शामिल है इन सभी ने राष्ट्रगान में मौजूद भारत भाग्य विधाता और अधिनायक शब्द पर आपत्ति जाहिर करते हुए सुभाष चंद्र बोस द्वारा आजाद हिंद फौज के लिए अपनाए गए जन गण मन के परिवर्तित रूप को अपनाया जाने की वकालत की है जिसमें 95 फ़ीसदी मूल गीत को ही रखा गया है अब जन गण मन में बदलाव होगा कि नहीं यह तो समय ही बताएगा लेकिन इतना तो तय है कि जन गण मन ही हमेशा ही देश का राष्ट्रगान बनकर देश भक्ति का जज्बा जगाता रहेगा।
रोहित राज मिश्रा
हिंदू हॉस्टल इलाहाबाद विश्वविद्यालय