जन्म जला सा हूँ शायद..!!
🌻🌻 ग़ज़ल 🌻🌻
जन्म जला सा हूँ शायद,
इक़ अंधियारा हूँ शायद।
डग मग जीवन की नैया,
दूर किनारा हूँ शायद।
बर्तन खाली हैं यारो,
वक़्त का मारा हूँ शायद।
रिश्ते नाते बेमानी,
आंगन सूना हूँ शायद।
देख के हालत हंसते हो,
एक तमाशा हूँ शायद।
ढाई आखर लिख दो बस,
कागज़ कोरा हूँ शायद।
मोल मेरा भी भर लो कुछ,
जिंदा मुर्दा हूँ शायद।
देख पपीहा शोर करे,
बादल काला हूँ शायद।
लोग “परिंदा” कहते क्यूँ,
मैं परवाना हूँ शायद।
पंकज शर्मा परिंदा🕊